कवी, हेराफेरी और कविता
कवी, हेराफेरी और कविता
किसी ने कवी से पूछा,
'आजकल कविता नही लिख रहे हो ?'
सवाल में छिपे तंज़ को भांपते हुए कवि ने कहा,'तुमने मुझे कवी मान ही लिया आख़िर।'
अरे नहीं ! हाँ हाँ,नहीं !
क्या हाँ, नहीं ?
वह ढिठाई से कहने लगा,
'शब्दों के हेर फेर से कोई कवि बन जाता है क्या ?'
कवी ने रोष से पूछा,'शब्दों का हेरफेर ?'
और नहीं तो क्या ?
कवि ने जोर देते हुए कहा,'लोग न जाने कैसी कैसी हेराफेरी करते हैं।
ये कवि और लेखक शब्दों में हेरफेर
नहीं करते बल्कि वह अल्फ़ाज़ों में रूह भर देते हैं....
तुम जैसे लोग दीमक जैसे होते है
जो किसी बात का विरोध नही करते...
और ख़ामोशी अख्तियार कर सिस्टम
को खोखला कर देते हैं.....
क्योंकि कवी बेख़ौफ़ होकर अन्याय के ख़िलाफ़ लिखता है......
हुक्मरानों की मनमानी पर भी वह लिखने की जुर्रत करता है....
कवियों और लेखकों की बदौलत तो दुनिया चलती है.......
तंजिया बात करनेवाला बड़ी खामोशी से चल दिया
शायद उसे जवाब मिल गया था.....