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Aravinda Das

Comedy Romance

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Aravinda Das

Comedy Romance

कवि की कबिता

कवि की कबिता

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तारीख थी मार्च इक्कीस की,

एक कवि की थी शादी की पहली रात,

मन मैं ढेर सारे उम्मीद लेकर,

घूंघट ओढी बैठी अपनी बीवी से बोले।


कितने खुसनसीब है हम, बिश्व कबिता दिवस मैं,

हो रही हैं हमारे जिन्दगी की शुरूआत,

एक हो जाने से पहेले आओ

हम एक दुसरे को ठिक से जान लें हम।


मेरे बारे मैं कुछ जानना है तो,

बेधड़क पूछ लो और,

चिंता दूर कर लो अपनी।

शरमाई हुई बीवी ने बोला

मेरी कसम खा के सच बोलिए,

मेरे सिवा और कोई है ज़िन्दगी मैं आपके ?


मुसकुराके कवि बोले,

कबिता है मेरी ज़िन्दगी, कबिता मेरी बन्दगी।

कबिता ही है मेरी पहला प्यार

कबिता नि दी मुझे पहचान।


हर पल सोचता हूँ कबिता की बारे मैं,

मेरे कायनात, रूह मैं बसी है कबिता।

मेरे ह्रदय मैं झांक कर देखो तो,

नज़र आयेगी तुमको कबिता।


झट से रो पड़ी दुल्हन,

और मोबाइल मैं शिकायत कर ली अपनी माँ से,

"मैं तो लूट गयी, बर्बाद हो गयी।

तुम्हारा शक सच निकला माँ,

सौतन तो यहाँ बैठी है पहेले से,

ज़िन्दगी मेरी बन गयी चिता,

चुडेल का नाम है "कबिता"।



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