कवि कागज़ और कलम
कवि कागज़ और कलम


चलो कुछ लिखा जाए
कहते हुए कवि ने कलम उठायी
सोचते हुए कागज़ पर लिखना चाहा
लेकिन कलम जैसी अटक गयी
कलम के रुकने से
कविता भी ठहर गयी
कविता के विषय और अहसास
सब जैसे अचानक ठहर गए
रुकती कलम को छोड़कर
सृजन के पलों में मशगूल होकर
कवि कम्प्यूटर के कीबोर्ड पर
ताबड़तोड़ उंगलियाँ चलाने लगा
कुछ लफ़्ज़ स्क्रीन पर दिखने लगे
लेकिन कवि सन्तुष्ट नही हो रहा था
कंट्रोल जेड और कंट्रोल वाय में
बस उलझता ही जा रहा था
आज कवि उदास हो रहा था
उसकी कविता बन नही पा रही थी
कभी लफ़्ज़ साथ छोड़ दे रहे थे
तो कभी उन लफ़्ज़ों के अहसास
बिना किसी अहसासों के लफ़्ज़
बेहद कड़वे और कठोर लग रहे थे
आज के हालातों पर लिखना छोड़
कवि फैंटेसी पर कविता लिखने लगा
आये दिन अखबारों की खबरों से
कवि को अब अंदाज़ा हो गया है
सदियों बाद उसके रचे नायकों की
मूर्ति बनाके लोग उन्हें पूजने लगेंगे
बस फिर एक चमत्कार हुआ
कीबोर्ड पर कवि की उँगलियाँ
ताबड़तोड़ चलकर महाकाव्य
और उस नायक को रचने लगी ....