कुंभ: आस्था का संगम
कुंभ: आस्था का संगम
नीले नभ के नीचे कहीं,
जहाँ नदियाँ मिलतीं संगम वहीं,
गंगा, यमुना, सरस्वती की धार,
आस्था का पर्व, अद्भुत संसार।
मिलते हैं जहाँ असंख्य प्राणी,
मन में बसती एक ही कहानी,
डुबकी लगाकर पुण्य कमाएँ,
बैठ यहां अब धुनी रमाएं।
साधु संतों का शाही स्नान
जप तप में डूब लगाओ ध्यान
भस्म चढ़े तन, आँखों में ज्ञान,
कुंभ में झलकता ब्रह्म का मान।
मंदिरों के घंटे, मंत्रों का स्वर
भक्तों के मन मंदिर में बसे ईश्वर,
मेला नहीं है, ये जीवन का मर्म,
हर कण में बसा दिव्यता का धर्म।
प्रकृति का अद्भुत ये आयोजन,
मानव और ईश्वर का है समागम,
कुंभ है भारत की आत्मा का रंग,
सदियों से बसा इसमें भक्ति का संग।
हे कुंभ! तू आस्था की है पहचान,
जहाँ मिलते धर्म और सब इंसान,
तेरी गोद में मिलता जीवन का ज्ञान,
यही तो है बस मोक्ष का विधान।
