कुदरत का करिश्मा
कुदरत का करिश्मा
कुदरत का करिश्मा है यह जीवन।
कुदरत का ही तो करिश्मा है हम।
दो घड़ी आराम से बैठ कर सोचो तो जरा!
कहां से हम आए हैं और कहां पर जाएंगे हम?
इसी जीवन में चलते चलते कहां से कहां तक आ गए हम?
जीवन अभी चलता जा रहा है,
ना मालूम कितना और है और कहां पर होगा खत्म?
यह कुदरत का करिश्मा नहीं तो और है क्या?
हम रोज देखते हैं लोगों को आते जाते,
लेकिन व्यवहार हमारा ऐसा है जैसे कि इस दुनिया से कभी भी जाएंगे ही नहीं हम।