कुछ
कुछ
ऐसा क्यों लगता है कभी कभी
की हाथों से कुछ छूट रहा है,
अब सब कुछ खाली हो गया,
मेरे पास कुछ नहीं बचा,
लगता है समेट लूँ सब कुछ,
पर ये कुछ है क्या पता नहीं,
एक ही आलमारी को सौ बार खोल कर
देखती हूँ, कुछ गुम तो नहीं हुआ?
सब कुछ तो वैसा ही हैं पर ये
खालीपन का एहसास क्यों है ?
क्यों निगाहें और दिल
कुछ ढूंढ रहे हैं हर पल ?
मान क्यों भरी है कुछ
खोने के एहसास से ?
