कुछ पल
कुछ पल
करती वह वसुधा का श्रृंगार
पहन आकंठ फूलों का हार
तन पर धानी , वसन डार
सज धज बैठ,करती इंतजार ।।
फिर हौले से मंद मुस्कुराई बयार
चुपके से लाई संदेश, चमन का
संस्मित वदन , सकुचाया मन
अलसाया तन ,थके नयन ।।
नयी डगर , अब नया सफर
होगा कैसा ? नव जीवन
थी मची, हिय में उथल-पुथल
चलना होगा बहुत संभल- संभल
तभी सुकून से बीतेंगे कुछ पल ।।
लेकिन वह नवेली, थी अकेली
गुलों गुलबदन सी हुई चमेली
सुलझा न पायी , अबूझ पहेली
होगा कैसा? वह आने वाला कल
क्या सुकून दे पायेंगे वो पल ।।

