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Shiwani Kumari

Abstract

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Shiwani Kumari

Abstract

कुछ फूल का खिलना बाकी है

कुछ फूल का खिलना बाकी है

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कोरे मन के पन्नों पर कुछ शब्द उभरना बाकी है

एक ख़्वाब का आना बाकी है एक रात गुजरना बाकी है। 


मैं पुष्प वलय के बीच रखे दीपक की तरह जलती हूं

मेरे तल के अंधेरे में अब दीपक का जलना बाकी है। 


मन का उपवन विराना है तुम आओ तो हरियाली आए

कुछ शाख पे कोंपल फूटे हैं कुछ फूल का खिलना बाकी है। 


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