सादगी
सादगी
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ले रहा है विदा सूरज चूम कर माथा नदी का
और संझा देखती है राह फिर अपने शशि का।
फिर किसी गुंजन पे मोहित हो रहा है मन कली का
मेरा नहीं तुम्हारा नहीं, ये किस्सा है हम सभी का।
रूप, रंग, श्रृंगार सब चमक बिखरे पड़े हैं
गौर से देखो तो सारा मामला है सादगी का।