कुछ फिक्र नहीं
कुछ फिक्र नहीं
कुछ फिक्र नहीं
तुम जो हो पास
गुजर जायेगा हर लम्हा
यूँ ही तेरे संग
बातें करते-करते!!
रास्ते भी हैं सामने
रूख बदलने का
मन नहीं
अब तेरे बिन
तन्हा चलने का
हुनर नहीं!!
क्यों बेक़रारी है सांसों में
धुआं-धुआं
हुआ है आलम
तेरी पनाह में साकी
आज मरने को
बेचैन का रूह,
न जाने क्यों
न जाने क्यों!!
भूल न पायेंगे वो लम्हात्
जब पास थे तुम
जिस्म से नहीं
रूह की कैद से भी
आजाद थे तुम!!