कुछ लम्हे
कुछ लम्हे
याद नही कैसे और किस बात पर,
वो तुमसे पहली बार मिले थे।
हाँ शायद वो कुछ लफ्ज़ो पर मेरे,
तुमने कुछ तो कहा था।
फिर पता ना चला कब,
हर रोज वो तुमसे मिलने लगे।
अल्फाज़ लबो पर आते रहे,
और शीशे सा दिल मे उतरते रहे।
तुमने मुझे मुझ से रू-ब-रू कराया,
और बिन छुए अपने होने का
एहसास भी कराते रहे।
मैं अब भी हूँ कही बाकी,
हाँ ये भी तुमने ही सिखाया।
कुछ ही वक़्त के लिए सही,
पर ज़िन्दगी को मेरी हर
रंग से फिर मिलाते रहे
तुम्हारी हर शैतानी ना जाने
कब मेरी आदत सी बन गई
तन्हाई मे भी हो मुस्कुराहट,
जैसे घर कर गई।
पर वक़्त को मेरा यूँ फिर
जी लेना गवारा ना था
मुझे समझा ना सके तो
तुम्हे तुम्हारी दुनिया मे ही उलझा दिया
हर पल बन कर रह गया,
बस ना खत्म होने वाला इंतज़ार मेरा।
हाँ याद है तेरा कहना आज भी,
कि साथ हूँ तेरे शायद गलत है ये।
यकीं पर से भी, उठ गया यकीं तब मेरा।
बीच राह पर वो अमावस की रात सा पल
और वो डर भी महसूस किया था मैंने।
वो अश्को की बारिश में
हर रात खुद को भिगोते रहे
तुम हो खुश तो हम भी है खुश,
बस ये कहते रहे और
तुमसे कहकर भी, कुछ ना कहा,
बस खामोशी से हर दर्द सहते रहे।
जाने से पहले सोचा,
वो साथ बिताया हर पल पिरो दू
जो कभी भूल भी जाओ तो याद दिला दू
कि कुछ पल का ही सही,
तुमसे प्यार मिला था
वो लड़ते झगड़ते पलो का साथ मिला था।
मुझे भूल जाओ तो कोई बात नही
पर खुद को पा लेना,
फिर से खो ना जाना कही।
और हाँ दवाई तुम वो
अपनी याद से लेते रहना
अपना ख्याल अपनो के लिए ही सही,
पर हमेशा रखना।
याद रहेंगे वो तुम्हारे संग
बिताया हर लम्हा
वो तुमसे पहली बार मिलना
और आज का बिछड़ना।
यादों से कहीं दूर,
दिल में रह जाओगे बसे
सिर्फ और सिर्फ तुम।