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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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कुछ लिखना मेरे लिये

कुछ लिखना मेरे लिये

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कुछ लिखना मेरे लिये

उस एहसास की अभिब्यक्ति है

जो कागज की काली कोठरी में

बच बचाकर रहते हुये

दिल मे समाया हुआ है।

अगर तुम्हें सत्य लगता है

तो सोचो।


हमारे प्रयास तुम्हारे प्रयास

कितने कितने सार्थक हैं।

याद करो उस एक पल को

जब सम्बन्धों की साया

अलगाव का विस्फोट लगी थी।

मुझे तो याद है।


अपने प्रयास

प्रयासों का सिलसिला

थोड़ा दूसरे एहसासों की सीमाओं में बंधा बंधा

उम्मीदें और उसकी प्रतिक्रिया।

कुछ लिखना मेरे लिये

उस एहसास की अभिब्यक्ति है।


जो शिखर से शिखर तक के सफर में

सरकती हुयी मंजिलों के

संग्रहित खजाने में

डूबते उतराते

हाथ पांव चलाते

थकान की स्फूर्ति में एक उत्साह होता है

एक अनजाने उत्सव की उम्मीद में।


कुछ लिखना मेरे लिये

उस एहसास की अभिब्यक्ति है

जो गर्म हवाओं के चक्रवात को देखता हुआ

उन्ही हवाओं के बीच परत

दर परत लिपटता हुआ

अतीत से लगाव

और भविष्य की कल्पना के बीच

सहमते सहमते

डरते डराते

कुछ कहना होता है।


अगर तुम्हें पाखंड लगता है

तो समझो तुम्हारे विश्वविजय

अभियान का काला घोड़ा

शांति के दल दल में फंस गया है

और तुम जीवन के रेगिस्तान में

आगे बढ़ जाओ

अपने अपने परमात्मा की दुनिया में काला

वहाँ भी पाओगे मुझे

अपने लगाए हुए जंगल में

भटकाव का आनन्द लेते हुये।


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