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Juhi Grover

Abstract

3  

Juhi Grover

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कुछ ख़्वाहिशें

कुछ ख़्वाहिशें

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कुछ ख्वाहिशें दबी हुई थी 

दिल के किसी कोने में, 

बाहर न निकल पाई थी।


हमराज़ न मिला कोई, 

पल भर की ज़िन्दगी में, 

ज़ाहिर न हो पाई थी ।


दफ़न करना था मुश्किल, 

मुँह सिये रखना था मुश्किल, 

ज़िंदगी कम ही मिल पाई थी ।


कफ़न न मिला कोई, 

कब्रिस्तान कम पड़ गया,

ख्वाहिशें दफ़न न हो पाई थी ।


कुछ ख्वाब अनदेखे थे, 

रह गए थे सीने में, 

कब्र तक ही पहुँचा पाई थी ।


कुछ ख्वाहिशें....... 


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