कुछ गुमनाम लम्हे
कुछ गुमनाम लम्हे
नाज़ुक से
कुछ अधूरे से
विरह की लपटों में
एक राख के जैसे भटके से
हसरतों की आंधी में
एक हकीकत के सपने से
वो कुछ गुमनाम लम्हे
जो हकीकत को
धुंधला सा कर देते हैं
एक उम्मीद को उजला सा
कर देते हैं।
बेवक्त से
कुछ बेशब्द से
तेरी करवटों में लिपटी वो
पुरानी सिलवटों से
दो आंखों के बीच हुए
सपनों के एक समझौते से
वो कुछ गुमनाम लम्हें
जो हकीकत को धुंधला सा
कर देते हैं।
एक उम्मीद को उजला सा कर देते हैं।
