STORYMIRROR

Fahima Farooqui

Abstract

3  

Fahima Farooqui

Abstract

कुछ बोलो ना

कुछ बोलो ना

1 min
255

गुमसुम क्यों हो कुछ बोलो ना।

राज़-ए-दिल अपना खोलो ना।


हर एक का अपना हुनर होता,

औरों से ख़ुद को तोलो ना।


कब तक रहोगे आँसू छुपाए,

खुल कर अब तुम तो रो लो ना।


क्यूँ  ढूँढ़ते रहते हो यह - वह,

ख़ुशी अपने अंदर टटोलो ना।


ये पल फिर वापस नहीं आएंगे,

जी भर इन लम्हों को जी लो ना।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract