कथा सोमनाथ की
कथा सोमनाथ की
यूं तो सोमनाथ की कथा पुरातन है,
किंतु लगती आज भी नूतन है
रुप,चाह, लाड़ की अति बुरी होती है
अति कोई भी हो अति बुरी होती है
रूप की अति सीता को भारी पड़ी
चाह की अति चांद को भारी पड़ी
चांद को रोहिणी से अति प्यार था,
,चित्रा,भरणि आदि को ये दुश्वार था।
एक बेटी से अति प्यार अन्यों का तिरस्कार,
ससुर दक्ष ने चांद को समझाया बहुत बार।
चांद दिल के हाथों मजबूर था
इसमें चांद का क्या कसूर था
दक्ष ने चांद को कठोर दंड दे डाला
चांद को क्षय होने का श्राप दे डाला।
चांदनी रातों में चांद सुलगने लगा,
दीवाना सा यहां वहां भटकने लगा।
चांद ने गणमान्यों से गुहार लगाई,
ब्रह्मा ने आखिर चांद को राह सुझाई।
प्रभास जाओ,शिव की आराधना करो,
जप तप भक्ति शिव की साधना करो।
शिव दयालु हैं आशुतोष हैं,
शिव हरते भक्तों के परितोष हैं।
शिव स्वयं एक अनुरागी हैं,
सदा पार्वती के अनुगामी हैं।
चांद चल पड़ा आशा लिए,
अपनी श्रापित आभा लिए।
प्रभास में, चांद ने कठोर तप किया,
ओम नमः शिवाय का बरसों जप किया।
धरा गगन नाद से गूंजने लगे,
भक्त स्वर कैलाश पहुंचने लगे।
महादेव प्रसन्न हुए,
चांद को चंद वर दिए।
तुम्हारा तन पंद्रह दिन घटेगा,
पंद्रह दिन बढ़ेगा।
कृष्ण पक्ष होगा,शुक्ल पक्ष होगा।
अमावस होगी पूनम होगी
तुम्हारी हर अदा निराली होगी
तुम्हारा तप स्थल प्रभासपाटन
तुम्हारे सोम नाम से जाना जायेगा
यहां स्थित मेरा लिंग स्वरुप
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग कहलायेगा।।
