"क्षमा शोभती उस भुजंग को "आज भी कितनी सटीक है।
"क्षमा शोभती उस भुजंग को "आज भी कितनी सटीक है।
यह पंक्ति प्रसिद्ध हिंदी कवि श्री रामधारी सिंह 'दिनकर' की कविता से है, "क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो" जो शक्ति, आत्म-संयम और गरिमा का प्रतीक है।
आज के संदर्भ में भी बहुत सटीक और प्रासंगिक है। इसका गहरा अर्थ यह है कि क्षमा या सहनशीलता तभी उचित और प्रभावशाली होती है जब व्यक्ति के पास शक्ति या सामर्थ्य हो। जो व्यक्ति कमजोर है, उसकी क्षमा को अक्सर मजबूरी या कमजोरी के रूप में देखा जाता है, लेकिन जब कोई शक्तिशाली व्यक्ति क्षमा करता है, तो वह उसकी महानता और संयम को दर्शाता है । यह बताता है कि शक्ति और सामर्थ्य का होना आवश्यक है, चाहे उस शक्ति का प्रयोग न भी किया जाए।
यह विचार आज के सामाजिक और राजनीतिक संदर्भों में भी लागू होता है, जहां बल और आत्म-नियंत्रण दोनों का होना महत्वपूर्ण है।
आज के समय में, चाहे वह व्यक्तिगत संबंध हों, राजनीतिक परिदृश्य हो, या अंतर्राष्ट्रीय संबंध, यह विचार बहुत महत्वपूर्ण है। जिनके पास शक्ति है, यदि वे क्षमा या सहनशीलता दिखाते हैं, तो वह एक सकारात्मक और सशक्त कदम माना जाता है। परंतु, यदि शक्ति न हो और केवल मजबूरी में क्षमा दिखाई जाए, तो उसका प्रभाव कमजोर पड़ सकता है।
इस पंक्ति का आज के संदर्भ में यह संदेश भी है कि अपने अधिकारों, सम्मान, और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए व्यक्ति को सक्षम और सशक्त होना चाहिए। जब आप ताकतवर होते हैं, तभी आपकी क्षमा और सहनशीलता की सही कद्र होती है।
क्षमा शोभती उस भुजंग को,
जिसके पास हो गरल प्रचंड,
परिवार में हो जो स्नेह भरा,
वो ही बनता है सदा अनुबंध।
माँ-बाप की ममता में शक्ति,
संतान के हर दोष माफ करें,
पर ये स्नेह तब ही हो सच्चा ,
जब अनुशासन का संग धरें।
समाज में क्षमा वही करता ,
जिसके पास मान, गर्व, शौर्य,
झुकता नहीं हर अन्याय पर,
शक्ति,सत्य का पूरक यथार्थ।
देश के वीर जब सीमा पर हों,
वो शक्ति का परिचय देते हैं,
जब शांति का समय है आता,
तब क्षमा का मोल समझाते ।
विदेशी मंच पर देश का नाम,
वो ही ऊँचा तब करते काम,
जो शक्ति से सम्पन्न होकर ,
सहिष्णुता से हाथ मिलाता ।
शक्ति क्षमा का यह संगम,
जीवन का सच्चा मार्ग बने,
परिवार,समाज और देश में,
यही मूल्य सदा उज्ज्वल रहे।
शक्ति बिना क्षमा अधूरी है,
क्षमा बिना शक्ति का व्यर्थ,
दोनों का मिलन ही बनता है,
प्रेम, शांति और समृद्धि अर्थ।
