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Gagandeep Singh Bharara

Abstract Inspirational

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Gagandeep Singh Bharara

Abstract Inspirational

*क्षितिज की उड़ान पर*

*क्षितिज की उड़ान पर*

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रुक गया था शायद कहीं, 

मैं सोच में था डूबा वहीं,


वक्त की परछाइयों से,

घबरा गया था, शायद कहीं,


इक फिक्र थी, जिसने रोका कहीं,

हासिल करने की चाहत भी रुकी, शायद वहीं,


टूटी थी शायद हिम्मत भी कहीं,

मुश्किलों ने घेरा था, शायद वहीं,


जो रुक गया मैं, हार ने डराया कहीं,

सोचने का वक्त भी, मिला शायद वहीं,


हौसले को अपने, फिर से जगाया वहीं,

जहाँ टूट कर बिखरा था, मैं शायद कहीं,


ऊँचे पहाड़ों को चीर ने की, फिर चाहत जगी कहीं,

खुद को सम्भाला, और मंजिल की ओर बढ़ा वहीं,


रुक गया था शायद डर के कहीं, 

शुरुआत, फिर मैंने की वहीं से, जहाँ रुका था कहीं।


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