क्षितिज के पार से
क्षितिज के पार से
एक बार आ जाओ क्षितिज के पार से
मां मधुर अनुभूति अद्भुत एहसास
मेरे मन दर्पण की एक पहचान
शब्दो मे तुझे बयां न कर सकूँ मैं
चली गई क्यों तू क्षितिज के उस पार।
अम्बर के हर चमकते तारे से
होता है तेरे होने का एहसास
उगते सूरज की पहली किरण
हर रोज लाती है तेरा पैगाम।
हवाएं छूती हैं जब आकर मुझको
होता है तेरे कोमल स्पर्श का एहसास
हर अंधेरे को चीरती मैं बढती हूं
तेरा स्वाभिमान हरदम मेरे साथ।
हर लम्हा दिल तुझे पुकारे
आंचल में अपने मुझे छुपा ले
हर बात मे तेरी बहुत याद आए
खोकर तुझको तेरे महत्व को समझ पाए।
स्वयं मां बनकर जाना मैंने
मां की ममता क्या होती है
तेरा ही अक्स खुद में ढूंढती हूं
तब मैं पूर्ण मां बन पाती हूं।
एक बार आ जाओ
क्षितिज के उस पार से।

