कसमें
कसमें
कसमें बहुत खाई,
पर तुमने कोई भी न निभाई।
वह बोली . . .
कौन सी कसम जो नहीं निभाई ?
उस आखिरी वक्त,
जब दुश्मन की झूठी तसल्ली देने आया,
तब मैंने तेरा नामोंनिशां न पाया।
मेरी अंतिम यात्रा में हर कोई आया,
पर वक्त के साथ तेरा झूठा वादा सामने आया।
न तुम आई,
ना तुम्हारा साया आया।
मौत के आखिरी दरवाजे तक,
तेरा इंतजार फरमाया।
तुझसे मिलने की चाह में,
उस दरवाजे से बार-बार लौट कर वापस आया।
पता नहीं क्यों मेरे जेहन में ख्याल आया,
तुझसे मिल लूँ।
पर उस आखरी वक्त में वह खुशनुमा पल,
साथ ना निभा पाया।
उसके सफाई देनी चाही,
तुम्हारी अंतिम यात्रा में नहीं आई,
पर तुम्हारे साँस के साथ,
अपनी साँस भी थाम लेनी चाही।
तुम्हारी यादों के सहारे नहीं जीना चाहती थी,
तो छाया की तरह तुम्हारे पीछे आई।
माफी चाहती हूं,
अगर लगा हो नहीं आई,
पर शायद तुमने ढंग से पीछे मुड़कर नहीं देखा,
परिजनों ने तुम्हारे बगल में,
एक और चिता लगाई,
तभी तो यहां तक तुम्हारे साथ आई।