कशमकश...
कशमकश...
समझदारी भी महँगी है
नादानी का भी मोल भरना पड़ता है
जिएं तो कैसे जिएं
न जाने ये कैसी कशमकश है...
हँसे तो दुनियाँ हँसाती है
रोए तो दुनियाँ रुलाती है
आँसुओं को कहाँ पनाह दें
न जाने ये कैसी कशमकश है...
जब तक काम आओगे लोग याद करेंगे
बेबसी में तो अपने भी शायद भूल जाएँगे
किसका साथ कायम होगा
न जाने ये कैसी कशमकश है...
मुस्कुराकर जिए तो गम देते गए
टूटकर बिखर गए तो मुस्कुराने लगें
वो जख्मों के निशाँ से सीखे या भूल जाएँ
न जाने ये कैसी कशमकश है...
लोग पत्थर को पूजते हैं
और इंसान को तोड़ते हैं
क्या बनकर चलूँ इस दुनियाँ में
न जाने ये कैसी कशमकश है...
दिल की बात कह दी तो वो रूठ गए
दिल में रखी तो चुबने लगी
कहा तो वो छूट गए न कहते तो हम टूट जाते
न जाने ये कैसी कशमकश है…
प्यार को नाम दिया तो अपनों ने छोड़ दिया
अपनों को अपनाया तो प्यार छूट गया
कौन है अपना कौन पराया
न जाने ये कैसी कशमकश है...
प्यार ही तो हर जख्म का मरहम है
फिर प्यार करने वाले को मिलती क्यों सज़ा है
प्यार में जिए या प्यार में तड़पे
न जाने ये कैसी कशमकश है...
ज़िन्दगी के पल हैं चंद
लोगों का बारें में सोचकर जिए
तो खुदके लिए कब जिए
न जाने ये कैसी कशमकश है...