मायका
मायका


जो नाम सुनकर हर बेटी का खिल उठता है चेहरा
न जाने कितना हसीन है वो आशियाना।
दिल के सारे तूफ़ान ठहर जाते हैं
न जाने क्या जादू है उस हवा में।
दुनियाँ के सारे ऐश-ओ -आराम एक तरफ
माँ के घर का चैन और सुकून एक तरफ।
वो गलियाँ, वो रास्ते और उनमें बसी अनगिनत यादें
बचपन की शैतानियाँ और दिए हुए वो झूठे बहाने।
वो खेल के मैदान, वो पाठशाला, वो सूने मकान
देते हैं एहसास जैसे पुकारते हो हर दम।
वो अलमारी, वो कपड़ें, वो किताबें
न जाने हर कोने में कितने सपने हैं सजोए।
वो माँ की गोद, पिता की छाँव और ढेर सारा प्यार
भाई-बहन के झगड़े और दादा-दादी का दुलार।
माँ के हाथ का खाना और वो सहेलियों का आना-जाना
सदा कायम है वहाँ बचपना और यादों का खज़ाना।
भूल जाते हैं सारे गम, सारी तकलीफें
छा जाती है ख़ुशी और प्यारी सी मुस्कान ।
हमेशा रहती हैं बेटियाँ राजकुमारी वहाँ
ज़िन्दगी की सबसे अनमोल और गहरी डोर है मायका।