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Ajay Singla

Classics

4  

Ajay Singla

Classics

कृष्ण-सुदामा

कृष्ण-सुदामा

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मथुरा में एक ब्राह्मण निर्धन

 दरिद्र था पर साफ़ था मन

कपडे नहीं थे ढकने को तन

मित्र थे पुराने कृष्ण |


सुदामा उसको सब कहते थे

बच्चे भूखे ही रहते थे

पत्नी के आँसू बहते थे

रोते दोनों सब सहते थे |


पत्नी ने तब जुबान खोली

द्वारकाधीश के तुम हमजोली

भर दें गए वो अपनी झोली

बच्चों की खातिर मैं ये बोली |


बार बार आग्रह किया जब

रास्ता कोई न रहा अब 

पोटली में सत्तू लिए तब

द्वारका पहुंचूं जाने कब


पहुँच गए श्री कृष्ण के धाम

थक गए थे, किया आराम

नगर देखते हो गयी शाम

याद आया फिर अपना काम |


द्वारपाल से जब कहा

कृष्ण का मैं हूँ सखा

कपडे देख हंसने लगा

फब्तियां कसने लगा |


कृष्ण तक संदेशा लाया

बोले ''क्या, सुदामा आया ''

वो तो था मेरा हमसाया

मन भी जैसे था बौराया |


पैर नंगे दौड़ पड़े थे

मिलने कोअधीर बड़े थे

सुदामा चुपचाप खड़े थे

देखें कृष्ण दिल के बड़े थे |


गले मिले अंदर बुलाया

शाही खाना था बनाया

सुदामा ने मन भर के खाया

सत्तू को उसने छुपाया |


सत्तू थे मुझे बहुत भाते

 स्वादिष्ट बनाके तुम थे लाते

दोनों थे तब मिलके खाते

आज हो तुम क्यों छुपाते |


पोटली फिर छीन ली थी

मुट्ठी दो मुंह में जो ली थीं

मन में दौलत उस को दी थी

स्वाद की तारीफ़ की थी |


बिछड़ने का वक़्त आया

कृष्ण से कुछ भी न पाया

सोचे ये सब प्रभु की माया

मन में था आनंद छाया |


पहुँचे वो गृहस्थी जहाँ थी

 झोंपड़ी होती यहाँ थी

अब न जाने वो कहाँ थी

पत्नी भी नही वहाँ थी |


महल वहां था एक गजब

पत्नी बनी सेठानी अब

बच्चे भी खुश सब के सब

कृष्ण की लीला अजब |

 








 



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