कृषक
कृषक
कड़क ठंड की न परवाह
ले बैल खेतों में हांक चले
है आश्रित घर किसानी पर
दे चारा पशुओं को बांध चले।
कठिनाइयों से भरा है जीवन
चेहरे पर कुछ पाने की आशा
इस बार फसल अच्छी होगी
मन में रखता यह अभिलाषा।
दो जून रोटी पाने के खातिर
भार्या, बालक सब मदद करें
खेतिहर है वतन के खेतों का
अभावों में गुजर, बसर करें।
मोटा खाते, पहनते मोटा
फिर भी चेहरे पर होती मुस्कान
है सीधा, सहज जीवन उनका
नहीं होते बड़े-बड़े अरमान।
कब बदलेगी देश की परिभाषा?
कैसे किसानों का मान होगा?
फूस की झोपड़ियों की जगह
खुला अपना आवास होगा।
शिक्षित करो, किसानों को!
न आत्महत्या जैसा विषाक्त पले
कृषि के सिवाय, आय के साधन हों
उन्हें भी जीने का नया मार्ग मिले।