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मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

Inspirational

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मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

Inspirational

कृषक हुंकार

कृषक हुंकार

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है किसान वह जीवन धारा, जिससे स्वयं विधाता हारा, 

धरती की छाती चीर-चीर कर, राष्ट्र की भूख मिटाता।

युग-युग कहता उसकी कहानी, कभी न बूढ़ी हो कृषक जवानी।।


किसान जब-जब भरता हुंकार, शासन थर्राता थर-थर, 

गौरे अंग्रेजों का चला न बस, काले अंग्रेजों क्या औकात तुम्हारी।

हर जोर जुल्म-अत्याचार सहकर, हक लेगा अब लड़कर।।


मिट्टी को स्वर्ण बना देता, आतंकी सिंहासन की जड़ें हिला देता, 

स्वयं भूखा रहकर किसान, सारे जग की भूख मिटा देता।

जब-जब जागी चेतना कृषक मजदूरों की, मशाल जल उठी क्रांति की।।


सुभाष, भगत, बिस्मिल के वंशज, सदा बचाते मानवता की लाज, 

डायर की गोली खाने वाले, अब अपनों की हंसते-हंसते खा जायेंगे।

पर पूंजीपतियों के गुलाम नहीं बनेंगे, अंतिम सांस तक लड़ेंगे ।।


जब तक राज रहेगा पूंजीपतियों का भारत की संसद पर 

1947 ई. वाली आजादी आधी-अधूरी है, आगे और लड़ाई है।

मांग रही धरती कुर्बानी, चल उठ संग्राम कर कृषक जवानी।।


खेतों की यौवनता, बूढ़े संसद की चूल्हे हिला रही है, 

देखो झूठे-मक्कार शासन को, बंदूकों की नोकों पर डरा रहा है।

मुट्ठी बांध हाथ उठाओ अपने, पूरे होंगे भारत तेरे सपने।।



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