कर्म
कर्म
जीवन है सब खेल कर्म का,
इंसान है खिलाड़ी इस धर्म का,
कर्म पूजा है तो इंसान देवता है इस जहाँ का,
कर्म नहीं तो जिन्दगी खेल है जुआं का !
कर्म देवता है जब संसार का,
मोह फिर क्यों इस नर कंकाल का,
जीवन है खेल सब कर्म का,
इंसान है खिलाड़ी इस धर्म का !
पूर्ण कर तू कर्ज जन्म का,
मान रख लो तुम इस धर्म का,
कर्म तू सिर्फ कर्म का,
जहां में नाम लिख दे इस धर्म का !
