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कर लें रूहानी प्यार

कर लें रूहानी प्यार

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आज मन को इख़्तियार हो चला है

तुम मेरे इस दिल पुजारी हो चला है

तेरे इश्क की सुराही से

कुछ घूँट चख लिया मैंने तुम्हें।


मैं कुछ-कुछ ढल रही हूँ

अम्रीता के अहसासो में..!


अद्भुत उन्मादी दीप एक जलाया था

चाहत का कभी इमरोज़ ने

जल रहा आज भी हर इश्क

करने वालों की रूह में..!


ओढ़ ली है मैंने चदर

तुम्हारे मोह के रेशे से बुनी

तुमने धर लिए अहसास

मेरे सीने के आगोश में।


दिल कहता है इश्क की डगर में

ऐसा मुकाम आए

मानें ज़माना तुझे इमरोज़

तो अम्रीता मुझे जानें..!


मैं तुम्हारे नज़्म की साँसें बनूँ

तुम हर मेरी गज़ल के सरताज बनों

मज़हबी दीवारों से परे

एक दूजे की शिद्दत बनें।


इस रिश्ते को चलो अमर बनाए

कहा था अम्रीता ने इमरोज़ से कभी..!


मैं तुझे फिर मिलूँगी

कहाँ कैसे पता नहीं

शायद तेरे कल्पनाओं

की प्रेरणा बन

तेरे केनवास पर उतरुँगी..!


थामो हाथ शिद्दत से मेरा

चलो कहानी फिर से दोहराएँ।।



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