कोविद सवैया...
कोविद सवैया...
साजन आ जाओ आज अभी ही,
नैनन जाने क्यों खटके जैसे।
प्रेम पिपासी मैं क्यों विरही सी,
वो पथ राही का भटके जैसे।।
देखन को मैं तो यूॅं तरसी हूॅं,
सॉंस यहॉं मेरे अटके जैसे।
बंजर भू प्यासी ही मरती है,
जान अभी जाते सटके जैसे।।
साजन आ जाओ आज अभी ही,
नैनन जाने क्यों खटके जैसे।
प्रेम पिपासी मैं क्यों विरही सी,
वो पथ राही का भटके जैसे।।
देखन को मैं तो यूॅं तरसी हूॅं,
सॉंस यहॉं मेरे अटके जैसे।
बंजर भू प्यासी ही मरती है,
जान अभी जाते सटके जैसे।।