STORYMIRROR

Madhulika Madhulika

Abstract

3  

Madhulika Madhulika

Abstract

मूरत है तू भी-मूरत हूँ मैं भी

मूरत है तू भी-मूरत हूँ मैं भी

1 min
232

तू मंदिरों में बैठा

मैं मंदिरों में आता

यहाँ स्थिर है तू भी

जड़वत हूँ मैं भी,

तू समाधी लगाए

मैं सुध-बुध गंवाए

तू देखे टकटकी लगाए

मैं कहूँ सब आँखें झुकाए,

बात चलती रही जैसे

बहरा है तू भी

अँधा हूँ मैं भी

वक़्त फिसले मुट्ठियों से

मगर

तू मुझ तक न आये

मैं तुझ तक न चलूं,

दोनों आस लगाए बैठे यहाँ

पत्थरों में तू भी

पत्थरों में मैं भी.....



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract