मूरत है तू भी-मूरत हूँ मैं भी
मूरत है तू भी-मूरत हूँ मैं भी
तू मंदिरों में बैठा
मैं मंदिरों में आता
यहाँ स्थिर है तू भी
जड़वत हूँ मैं भी,
तू समाधी लगाए
मैं सुध-बुध गंवाए
तू देखे टकटकी लगाए
मैं कहूँ सब आँखें झुकाए,
बात चलती रही जैसे
बहरा है तू भी
अँधा हूँ मैं भी
वक़्त फिसले मुट्ठियों से
मगर
तू मुझ तक न आये
मैं तुझ तक न चलूं,
दोनों आस लगाए बैठे यहाँ
पत्थरों में तू भी
पत्थरों में मैं भी.....
