मेरी अभिलाषा
मेरी अभिलाषा
मैं बनूं द्वार जिस मन्दिर का,
तुम मूरत उसकी बन जाना !
पड़े धूप जब मुझ पर,
तुम परछाई में छिप जाना !
मैं उलझा रहूं,जब जीवन पथ में,
तुम मधुर गीत बन छा जाना !
जब सूख रहे हो खुशियों के पल,
तुम मेघा बन, रस वर्षा जाना !
मैं बनूं बाग, मधुवन का,
तुम बागवान, बन अा जाना !
जब चमके चांदनी, लताओ पर,
तुम प्रीत की, रास दिखा जाना !
मैं बनूं काठ, जिस नाव की,
तुम नाविक,उसकी बन जना !
जब घिरे बेड़ा, मझधार पर,
तुम बैतार्णी, पार लगा देना !
मैं तन हारे पड़ा रहू जब पीड़ा में,
तुम स्याम,बैद्य बन आ जाना !
सूखे कंठ जब, अंतकाल हो मेरा,
तुम गंगा जल बन आ जाना !