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S Ram Verma

Abstract

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S Ram Verma

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हरी कोख का आनंद !

हरी कोख का आनंद !

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तुम्हें चाहने के लिए 

अपनी सांसों से तुम्हारे 

विकल ह्रदय को तृप्त 

रखना चाहता हूँ !


तुम्हारे ही भाव मेरे 

लफ़्ज़ों में उतरते रहें सदा 

इसलिए तुम्हारी रज्ज से 

जुड़े रहना चाहता हूँ !


भविष्य में तुम्हारे भाव 

और भी सूंदर हों इसलिए

मैं अब तुम्हारी रूह में 

उतरना चाहता हूँ !


तुम्हारी आँखों में उतर 

आये हरी हुई कोख का 

आनंद इसलिए तुम्हारी 

कोख को सदा सींचते  

रहना चाहता हूँ !


तुम्हारे होंठ सदा यूँ ही 

गुलाबी रस भरे बने रहे 

इसलिए मेरे शहद रूपी 

आखरों को सदैव तुम्हारे 

होंठों पर रखना चाहता हूँ !


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