कोरोना के नाम पत्र
कोरोना के नाम पत्र
हे कोरोना ! तुम कब जाओगे?
हमें आजादी के लिए कितना तरसाओगे?
बड़े -बड़े देशों को जकड़ तुमने रखा है ,
हमें हमारे ही घर में पकड़ तुमने रखा है।
माना छुट्टियाँ बढ़ा हमें आनंद तुमने दिलाया है।
तेरे वास्ते थाली बजायी ,
और दिया भी हमने जलाया है।
पर अब तो तुम जैसे यहीं बस गए हो,
हमारी ज़िन्दगी नीरस कर गए हो।
घर में बैठे हो रहे है हम बोर।
कब ख़त्म होगा तुम्हारा यह वर्ल्ड टूर ?
घर में आता है सामान ,
दो दिन रहता बालकनी में, वो बन के मेहमान।
सनिटिज़ेर से पखारे जाते उसके पाँव ।
तुम्हारे घुसने के फेल करते हर दांव ।
ऑनलाइन पढ़ाई की भी हो गयी शुरुआत,
रोज़ होती है कसरत अब नेटवर्क के साथ।
त्योहारों का मज़ा भी बिगाड़ चुके हो,
घूमने के अवसर भी मार चुके हो,
ज़िन्दगी सबकी ठप कर चुके हो,
मज़े सारे गप कर चुके हो।
अब तो चले जाओ न।
भले अगले साल फिर आ जाना ,
गर्मी की छुट्टी दो महीने और बढ़ा जाना।
क्या अभी आधी आबादी मिटा के मानोगे ?
हे कोरोना ! तुम कब जाओगे ?