शेर और चूहा
शेर और चूहा
पड़ा था शेर सुस्त जहाँ ,
चूहा खेले मस्त वहां।
इधर-उधर उछल-उछल ,
मचा दी उसने उथल-पुथल।
शेर जागा यह शोर सुन ,
चूहे की सिट्टी-पिट्टी गुम।
सोचा की मैं भाग जाऊं ,
शेर के पंजों में न आऊं।
जैसे ही वो भागने को आया ,
शेर के चंगुल में खुद को पाया।
बोला शेर से , " छोड़ो तुम गुरूर ,
एक दिन तुम्हारे काम मैं आऊंगा ज़रूर। "
शेर भी बोला , " छोटा जीव है।
खेल ही तो रहा था , चलो ठीक है। "
शेर के पंजों से जैसे ही छूटा ,
दुम दबा वह घर को लौटा।
कुछ दिन बाद थी जब सुबह सुहानी ,
इंसानो ने शुरू की अपनी मनमानी।
आये थे पकड़ने वो एक शेर।
फेंका जाल , किया उसे ढेर।
जाल में फँस जब शेर कराहा ,
अन्य जीव ने उसे सराहा।
मदद मांगने वह दहाड़ा ,
शोर सुन चूहा आया दौड़ा।
जाल कुतर उसने छुड़ाया।
शेर ने फिर एहसान जताया।
शेर ने समझा कुदरत का कायदा ,
छोटे जीव का बड़ा है फायदा।