कोरोना का दर्द
कोरोना का दर्द
रात्रि का सन्नाटा था श्मशान में चिता जल रही थी
ऐसे अंधेरे में कोई अर्थी श्मशान की ओर चल रही थी
प्लास्टिक में लिपटा, वह कभी किसी का अजीज था
हाय री किस्मत मरते वक्त वह कोरोना का मरीज था
लाने वाले पाँचों व्यक्ति अस्पताल के कर्मचारी थे
जलती चिता पर उसे डालकर वापस लौट रहे थे
इस धनिक का अंत देख कर उनकी आंखें बह रही थी
एक ही चिता दूसरे शव को लेकर तेजी से जल रही थी
नियति अपनी माया पर मंद मंद मुस्कुरा रही थी
दूर खड़ी मानवता सुबक सुबक कर रो रही थी।