फेरा नियति का
फेरा नियति का
एक फकीर ने खूब कहा है----
अमीर बन जाना बेचकर अपना जमीर
इससे तो बेहतर है हमारे जैसे फकीर.
पैसे के पीछे भागता आदमी कुछ भी कर जाता है
आपसी रिश्ते नाते इनसानियत सबकुछ भूल जाता है.
ना किसी से प्यार करता, ना कोई उसका अपना है
जिंदगी में अमीर बनना ही केवल उसका सपना है.
अपने आत्मसम्मान और जमीर को वह भूल जाता है
भ्रष्टाचार के दल दल में जाकर खुद ही फंस जाता है.
अंतिम समय में सारा पैसा कभी भी साथ नहीं देता
मौत के बाद यह शरीर एक कफन के साथ ही चलता.
असलियत जान कर भी उसको लालच ने ही घेरा है
अपने कर्म और नसीब के संग नियति का यह फेरा है.
