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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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कोई नहीं हमारा

कोई नहीं हमारा

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इस जगत में कोई नहीं हमारा है

हर शख्स स्वार्थ से बना तारा है

साथ देगा वहीं यहां पे तेरा साखी,

जिसको लगता तू जान से प्यारा है


पर अंजुमन ए जिंदगी में न दिखता

ऐसा कोई राही मंजिल पे हमारा है

इस जगत में कोई नहीं हमारा है

इस दुष्ट, पापी, बेईमान दुनिया में,


केवल बालाजी तेरा ही सहारा है

जब-जब भी में हताश होता हूँ

गम के दरिया में अकेला होता हूँ

तब तुझसे ही मिलता किनारा है


गंदगी से भरी जग की महफ़िल में,

तूने ही प्रभु मुझे फूल सा सँवारा है।


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