STORYMIRROR

Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Abstract

3  

Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Abstract

कोई नहीं हमारा

कोई नहीं हमारा

1 min
488


इस जगत में कोई नहीं हमारा है

हर शख्स स्वार्थ से बना तारा है

साथ देगा वहीं यहां पे तेरा साखी,

जिसको लगता तू जान से प्यारा है


पर अंजुमन ए जिंदगी में न दिखता

ऐसा कोई राही मंजिल पे हमारा है

इस जगत में कोई नहीं हमारा है

इस दुष्ट, पापी, बेईमान दुनिया में,


केवल बालाजी तेरा ही सहारा है

जब-जब भी में हताश होता हूँ

गम के दरिया में अकेला होता हूँ

तब तुझसे ही मिलता किनारा है


गंदगी से भरी जग की महफ़िल में,

तूने ही प्रभु मुझे फूल सा सँवारा है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract