कोई कसर
कोई कसर
फिजाओं में जहर
रोज पढ़ते हैं खबर
प्रकृति का कहर
स्याह होते बहर
यही है हमारी जिंदगी की सहर I
शब तक ढल जाते हैं कई पहर
जानकारी है बहुत लेकिन ,
हुआ नहीं कोई खास असर I
होश में लाने की चल रही है लहर I
हुई है पहले भी कई पहल
बस यूं ही कर रहे हैं सब जिंदगी बसर
खामोश जिंदगी अब गई है ठहर
प्रकृति ने भी रफ्तार लेने में,
अब छोड़ी नहीं कोई कसर।
