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संजय असवाल "नूतन"

Abstract

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संजय असवाल "नूतन"

Abstract

कोई अपना पीछे छूट गया उसका

कोई अपना पीछे छूट गया उसका

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लोग कहते हैं,

वो बेवजह 

इधर उधर की बात करता है,

वो अक्सर सीने में अपने

किसी की यादों को छिपा के रखता है।

ये वो ही जाने,

आखिर चलते चलते

वो क्यों ठहर जाता है,

किसी अजनबी को देख,

अक्सर क्यों ठिठक जाता है।

क्यों ख़ामोश सा रहता है,

कभी मायूस तो 

कभी रूआंसा दिखता है,

कभी हँसता है,

कभी रोता है,

नित नए रूप बदलता है।

तकता है 

आसमां को एक टक ऐसे,

जैसे कोई अपना उसका,

बहुत पीछे छूट गया है।



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