कमी
कमी
मैं कमी के पहाड़ पर बैठा हूं
मैं झरना बहुत ही अनोखा हूं
जल तो देता हूं बहुत ही मृदु,
साथ में कुछ कंकर भी देता हूं
सब में कुछ न कुछ कमी होती है,
फूलों मैं भी शूल की बात होती है
दीपक होकर भी उजाले से,
मैं कभी-कभी जल कर बैठा हूं
मैं कमी के पहाड़ पर बैठा हूं
बुरे शख्स में कोई तो अच्छाई होती है
कोयले में, मैं हीरे को तलाश बैठा हूं
ख़ुदा तुझे हर पल सलाम करता हूं
तेरी कारीगरी का आदाब करता हूं
सब में तू ही है, यह सोचकर
हर आईने में तुझे देख बैठा हूं
मैं कमी के पहाड़ पर बैठा हूं
