कमी वक्त की
कमी वक्त की
हर ख़ुशी है लोंगों के दामन में,
पर एक हंसी के लिये वक़्त नहीं,
दिन रात दौड़ती दुनिया में,
ज़िन्दगी के लिये ही वक़्त नहीं,
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं,
सारे नाम, मोबाइल में कैद रखे हैं,
पर दोस्ती के लिये जरा भी.वक़्त नहीं,
जन्मदिन,सालगिरह के लिये माध्यम बना,
फेसबुक,और वाट्सएप,मिलने का वक्त नहीं,
बेवजह इल्जाम लगा दीवार पर बंटवारे का,
पर तमाम लोग एक कमरे में भी हैं जुदा जुदा,
रिश्ता खो देते हैं फिर खोजा करते रहते हैं,
यही खेल हम ज़िन्दगी भर खेला करते हैं।
बड़े अजीब से हो गए रिश्ते आजकल,
सब फुरसत में हैं पर वक़्त किसी के पास नही।