STORYMIRROR

Sushant Kushwaha

Tragedy

4  

Sushant Kushwaha

Tragedy

कलयुग

कलयुग

1 min
402

कलयुग की करतल ध्वनि

बाजे चारों ओर

ना बचा पपीहा कोई

बचा ना कोई मोर


शान्ति का बसेरा उजड़ा

पसरा है बस शोर

कोई युग है ऐसा 

कलयुग का हो तोड़


सभ्यता संस्कृति नष्ट हुआ

प्रतीक्षा की है ओर

नैतिकता ले आएगा

नई युग की भोर


कालांतर की क्यारी से

लाओ अतीत की डोर

बांध दो वर्तमान को

लगाओ ना विश्व से होड़!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy