किधर जाएँ
किधर जाएँ
दुबिधा के द्वार खड़े किधर जाएँ
समेंट ले ख़ुद को या बिखर जाएँ,
आगे बढ़ें करूँ सामना हौसले से
या आँधी के पहले ही डर जाएँ,
अंधेरे सियाह रास्तों पे भटक गया
तनिक रौशनी मिले तो घर जाएँ,
वक़्त के घोड़े पर हूँ सवार
ज़रा थम जाए तो उतर जाएँ!
