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Vivek Pandey

Romance Fantasy

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Vivek Pandey

Romance Fantasy

कल्पना

कल्पना

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नज़र है समंदर, डूब कर देखता हूँ,

मैं, तेरी निगाहों को यूँ देखता हूँ।

तुहिन (बर्फ) की परत पे अरुण (धूप) सेंकता हूँ,

हिमालय पर जा के, मैं, रवि देखता हूँ॥

तुम्हारी निगाहों में रब देखता हूँ,

शामों-सहर, मैं सब देखता हूँ।

तेरी क़ातिल निगाहों को जब देखता हूँ॥


चंदा सितारे, गज़ब के नजारे,

ठंडी पवन, उड़ते पंछी हैं सारे।

नाचे मगन मोर, पपिहा पुकारे,

तीरे नदी शाम उतरी हो प्यारे॥

अंजुम भरा मैं गगन देखता हूँ,

तुम्हारी नज़र में, ये सब देखता हूँ।

मैं, क़ातिल निगाहों को यूँ देखता हूँ॥


आँखों से दिल की डगर खोजता हूँ,

खोने से पहले, सफर खोजता हूँ।

रौनक है सारे शहर रूबरू,

मैं, जुगनू की उजली चमक ढूँढता हूँ॥

तुम्हारी निगाहों में जब देखता हूँ।


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