ख्वाबों के मानिंद तुम
ख्वाबों के मानिंद तुम
ख्वाबों के मानिंद उतरकर, तुम इस दिल मे रहती हो।
मन तरंग को उद्वेलित कर, रक़्त कणों में बहती हो॥
ज्यों उपवन की शोभा बढ़ती, मधुर भ्रमर गुंजरों से।
नाम लिए ही उतरे लाली, खिलते हुए गुलाबों से॥
घुल जाती हो सांस में मद्धम, खुशबू लिए बहारों की।
महका जाती तन-मन मेरा, ज्यों हूँ मैं लकड़ी चन्दन की॥
महक-महक कर मृदु जीवन में मेरी रागिनी भरती हो।
ख्वाबों के मानिंद उतरकर, तुम इस दिल में रहती हो॥
मैं त्वरित जग जाता हूँ, भरी गहन सुख निद्रा से।
जब सपनों में दर्शन होते, कंचन-नयन सुभद्रा के॥
मधु के जैसी मीठी हो, कोमल कमल पंखुड़ियों सी।
वायु के जैसी बहती हो, स्वर झरनों के कल-कल सी॥
रति के जैसा रूप तुम्हारा, सुंदरता की पूरक हो।
चाँद देख शर्माये तुमको, यूँ काहे को हँसती हो॥
ख्वाबों के मानिंद उतरकर, तुम इस दिल मे रहती हो।
मन तरंग को उद्वेलित कर, रक़्त कणों में बहती हो॥

