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Vivek Pandey

Others

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Vivek Pandey

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सहमा शहर

सहमा शहर

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पंक्षियों को है अचम्भा,

मानवों को क्या हुआ?

रात भर सोते नहीं थे,

दर्शन, दिन में भी दुर्लभ हुआ।


पंक्षियों को है अचम्भा,

शोर से पूरा भरा,

इस शहर को ये क्या हुआ?

सन्नाटों से सहमा,

आसमां थर्रा रहा।


पंक्षियों को है अचम्भा,

क्या धरा पर वो बचे हैं?

या कि नूतन खेल कोई,

मिल के मानव खेलते हैं?

पंक्षियों को है अचम्भा!!



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