कलम
कलम
तुम्हारी कलम
हम पर टपकाती है
हर रोज स्याही,
हर रोज भर देती है
हमारा आंचल
नए रंगों से
कभी प्रेम का रंग
कभी त्याग और स्नेह
कभी महानता भरी रहती है
हम स्त्रियों के लिए।
पर ये सब सिर्फ
कलम तक ही सीमित
क्यो रह गया?
आखिर क्यो नहीं
दे पाया समाज हमें
सुरक्षा की भावना,
खुल कर जीने का अधिकार।
आखिर कब तक
सिर्फ कलम ही
लिखती रहेगी
कभी तो हकीक़त में
कर दिखाओ
ये सब आदर, सुरक्षा
और स्नेह की बातें।