19वीं सदी में मुग़ल काल के भारतीय चित्रकार,
मजहर अली खान थे एक अद्वितीय कलाकार ,
उन्होंने कंपनी कला को अपने हुनर से निखारा ,
पश्चिमी कला से भी चमका दिया ये जग सारा |
दोनों संस्कृतियों का मिश्रण था उनके कामों में,
पारंपरिक मुग़ल कला से अलग हुए वो गलियारों में
उनकी चित्रकला सीधी पश्चिमी की ओर जाती थी ,
तभी उनके नाम की महिमा चारों तरफ छाती थी |
मैदान में बैठकर कलाकार बना रहा था चित्र,
उठा रंगों का पैलेट, बांध लिया कवाकिब्रियों का तिर,
विचारों की वृद्धि कर, सृजनात्मकता का संसार,
जहाँ चारों ओर बदले, अनूठे रंगों का प्यार।
ब्रश से बना दिया नये उजालों में आकार,
प्रतिबिंब बनाया और दिया सुंदरता को आधार,
हर धारा को रंगों से भर दिया अपार,
जीवन के पलों पर किया अमर विचार।
सादगी को उसने बनाया चित्र का मोती,
समय के रूप को चमकाया कोटि - कोटि ,
देखा दर्पण में जब उसने अपने चेहरे की छवि को ,
आपात समय में भी मोड़ दिया सही राह की दिशा को |
रंग भरे चित्र का वो था ऐसा निर्माता,
कल्पना को समर्पित करने का खेल जिसे था आता ,
तभी उसके चित्र की सुंदरता थी बिखरी हुई ,
प्रतिष्ठा के पथ पर नई सफलता से निखरी हुई |
आज भी जीवित है मजहर अली खान की कला ,
उनकी प्रभावशाली चित्रकारी है हमारी प्रशस्त ध्वजा ,
वे थे मध्यकालीन काल के सूर्य जैसे उज्ज्वल कलाकार ,
और उनके आदर्शों से आज भी निखरता है ये संसार ||