कल बाजार में
कल बाजार में
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कल बाजार में
दिख गये मुझे
मिस्टर 'व्यास'
जो हुआ करते थे
कभी
हमारे पड़ोसी
और 'बहुत खास'
स्वभावतः ही
कर बैठे हम
नमस्कार
पूछ लिया
कैसा है हाल
कहाँ रहे इतने साल ?
कैसे हैं ?
दिखते तो
पहले ही जैसे हैं।
और बस
यही पूछना
बन गया हमारा काल
जो पर्याप्त था
हमें करने को बेहाल।
शुरू हो गईं
उनकी कहानियाँ
बिना सिर पैर की
लन्तरानियाँ
बीतता रहा वक्त
चुप ही नहीं हो रहा था
कम्बख़्त
न मुँह थकता न जुबान
हम होते रहे
उनकी बातें
सुन सुन कर परेशान
पछताते रहे
क्यों छेड़ दिया
यह पुराना सितार ?
अब तो
वही मसल
हो रही थी चरितार्थ
कि 'आ बैल मुझे मार।'