कितनी आसानी से तुमने कह दिया
कितनी आसानी से तुमने कह दिया
कितनी आसानी से तुमने कह दिया
फूलों सी महक नहीं, पर न समझो मुझे कांटा
सुबह का भूला था मैं, जो शाम को फिर लौटा
चमक कम थी मुझमें, पर सिक्का नहीं खोटा
कितनी आसानी से तुमने कह दिया
कि एक बार इज़हार किया तो होता
कि एक बार मुडकर बुलाया तो होता
कि एक बार मुझे जाने से रोका तो होता
कितनी आसानी से तुमने कह दिया
तुम समझ न सके, मन मे कैसी उलझनें थी
तुम देख न सके, होठों पर दिल की पाबंदी थी
क्या जानो,पैरो मे परांपराओं की बेडियां भी थी
मोहब्बत की आंगन में रुसवाई की लकीरें भी थी
कितनी आसानी से तुमने कह दिया
मेरे इश्क को कायर करार कर दिया
ब्यान करते करते आरसा लगा दिया
उम्रभर की दूरी का फैसला सुना दिया।