कितने सच कितने झूठ
कितने सच कितने झूठ
कितने सच, कितने झूठ
यह तो बातों का शहर है जनाब
चुप्पी साध लेना
पहला कदम है छलने का
आंखें दिखा कर बातें मनवाना
एक और कदम है भरोसे पर
भरोसा तोड़ देने का
और कितने झूठ बोले जायेंगे
छोटी सी बात को छुपाने में
शायद उन्हें मालूम ही न हो
हर बात से हम वाकिफ है
उनसे सच जानने की इच्छा नहीं
बस एक उम्मीद है छोटी सी
हम झूठे साबित हो जाए।।